Friday, September 12, 2008

कन्या मेरी !

तुम्हारी सेवा, तुम्हारा चलन
तुम्हारी चिंता, तुम्हारी कथनी,
पुरूष-जनसाधारण में
ऐसा एक भाव पैदा कर दे-
जिससे वे नतमस्तक,
नतजानु हो,
ससम्भ्रम,
भक्तिगदगद कंठ से --
"माँ मेरी, जननी मेरी!" कहते हुए
मुग्ध हों, बुद्ध हों, तृप्त हों,
कृतार्थ हों, --
तभी तो तुम कन्या हो,
--तभी तो तुम हो सती !

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