"भारत की अवनति तभी से आरम्भ हुई जब से भारतवासियों के लिए अमूर्त भगवान असीम हो उठे -- ऋषियों को छोड़ कर ऋषिवाद की उपासना आरम्भ हुई। भारत ! यदि भविष्यत्-कल्याण को आह्वान करना चाहते हो, तो सम्प्रदायगत विरोध को भूल कर जगत के पूर्व-पूर्व गुरुओं के प्रति श्रद्धासंपन्न होओ -- और अपने मूर्त एवं जीवंत गुरु वा भगवान् में आसक्त होओ, --और उन्हें ही स्वीकार करो--जो उनसे प्रेम करते हैं। कारण, पूर्ववर्ती को अधिकार करके ही परवर्ती का आविर्भाव होता है !"
--: श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र
"अर्थ, मान, यश इत्यादि पाने की आशा में मुझे ठाकुर बनाकर भक्त मत बनो, सावधान होओ - ठगे जाओगे; तुम्हारा ठाकुरत्व न जागने पर कोई तुम्हारा केन्द्र नहीं, ठाकुर भी नहीं-- धोखा देकर धोखे में पड़ोगे"
--: श्री श्री ठाकुर
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