तुम जगत में प्लावन की तरह बढ़ चलो--
सेवा, उद्यम, जीवन और वृद्धि को लेकर
व्यष्टि और समष्टि में
अपने आदर्श की प्रतिष्ठा करके --
जय, यश और गौरव सहित ; --
और, नारी यदि चाहे तुम्हें
तो अपने मंगलशंखनिनाद से
सारे हृदय को मुखरित कर
तुम्हारे पीछे दौड़ पड़े, --
किंतु सावधान !--
पर इसकी चाह तुम्हें नहीं रहे ! १
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