Monday, December 26, 2011

Utsav

उत्सव 

जिस प्रचेष्टा के आवाहन पर
           जन साधारण
                     उत्फुल्ल आनन्द से
                               ज्ञान में समृद्ध होकर,
अपने को प्राणन, व्यापन एवं वर्द्धन में
           नियंत्रित कर सके
                     ऐसे मंगलप्रसू
                                अभिसमागम को ही
                                            उत्सव कहा जाता है!

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र (वाणी सं. 304 , चलार साथी) 

Neeti Kisi Ko Baadhy Nahin Karti

नीति किसी को बाध्य नहीं करती 

सुनीति या सुनियम
            किसी को भी जबर्दस्ती करके
                          स्वयं का अनुसरण कराना नहीं चाहता;--
किन्तु जो मंगल चाहता है--
           यदि वह अनुसरण करता है,
                         तो मंगल उसे नन्दित करेगा ही--
                                       संदेह नहीं.

--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र (वाणी सं.-306 चलार साथी)

Thursday, September 18, 2008

यशस्विता में सेवा

तुम मनुष्य के
ऐसा नित्य प्रयोजनीय
बनकर खड़े होओ --
जिसमें तुम्हारी सेवा से
तुम्हारा पारिपार्श्विक
यथासाध्य प्रयोजन की पूर्ति करके
जीवन, यश और वृद्धि को
आलिंगन कर सके; --
और, ऐसा करके ही तुम
हर के हृदय में व्याप्त हो जाओ
और ये सब तुम्हारे
चरित्र में परिणत हो, --
देखोगे
यश तुम्हें क्रमागत
जयगान से यशस्वी बना देगा
संदेह नहीं। 3

सत्यानुसरण

जगत में मनुष्य जो कुछ दुःख पाता है उनमें अधिकांश ही कामिनी-कांचन की आसक्ति से आते हैं, इन दोनों से जितनी दूर हटकर रहा जाय उतना ही मंगल।
भगवान श्रीश्रीरामकृष्णदेव ने सभी को विशेष कर कहा है, कामिनी-कांचन से दूर-दूर-बहुत दूर रहो।
कामिनी से काम हटा देने से ही ये माँ हो पड़ती हैं। विष अमृत हो जाता है। और माँ, माँ ही है, कामिनी नहीं।
माँ शब्द के अंत में 'गी' जोड़कर सोचने से ही सर्वनाश। सावधान ! माँ को मागी सोच न मरो।
प्रत्येक की माँ ही है जगज्जननी ! प्रत्येक नारी ही है अपनी माँ का विभिन्न रूप, इस प्रकार सोचना चाहिए। मातृभाव हृदय में प्रतिष्ठित हुए बिना स्त्रियों को स्पर्श नहीं करना चाहिए--जितनी दूर रहा जाये उतना ही अच्छा; यहाँ तक की मुखदर्शन तक नहीं करना और भी अच्छा है।
मेरे काम-क्रोधादि नहीं गये, नहीं गये-- कहकर चिल्लाने से वे कभी नहीं जाते। ऐसा कर्म, ऐसी चिंता का अभ्यास कर लेना चाहिए जिसमें काम-क्रोधादि की गंध नहीं रहे- मन जिससे उन सबको भूल जाये।
मन में काम-क्रोधादि का भाव नहीं आने से वे कैसे प्रकाश पायेंगे ? उपाय है-- उच्चतर उदार भाव में निमज्जित रहना।
सृष्टितत्व, गणितविद्या, रसायनशास्त्र इत्यादि की आलोचना से काम-रिपु का दमन होता है।
कामिनी-कांचन सम्बन्धी जिस किसी प्रकार की आलोचना ही उनमें आसक्ति ला दे सकती है। उन सभी आलोचनाओं से जितनी दूर रहा जाये उतना ही अच्छा।

Tuesday, September 16, 2008

कृतकार्यता में क्रमागति

तुम जानो या नहीं जानो,
समर्थ हो या असमर्थ--
तुम्हारी चेष्टा की क्रमागति अटूट,
अव्याहत रहे, --
सिद्धि का पथ खोज लो--
कृतार्थ होगे
कृतकार्यता आयेगी ;
और तुम्हारी प्रतिष्ठा
तुम्हारे आदर्श को
प्रतिष्ठित करेगी ही--
निश्चय जानो ! २