जिस प्रचेष्टा के आवाहन पर
जन साधारण
उत्फुल्ल आनन्द से
ज्ञान में समृद्ध होकर,
अपने को प्राणन, व्यापन एवं वर्द्धन में
नियंत्रित कर सके
ऐसे मंगलप्रसू
अभिसमागम को ही
उत्सव कहा जाता है!
--: श्रीश्रीठाकुर अनुकूलचन्द्र (वाणी सं. 304, चलार साथी)
सुनीति या सुनियम
किसी को भी जबर्दस्ती करके
स्वयं का अनुसरण कराना नहीं चाहता;--
किन्तु जो मंगल चाहता है--
यदि वह अनुसरण करता है,
तो मंगल उसे नन्दित करेगा ही--
संदेह नहीं.